भाई, स्पेस में जाना कोई मज़ाक थोड़ी है
मान लो तेरे को कहा जाए कि रॉकेट में बैठ, ऊपर स्पेस जा। तू हाँ कर देगा? शायद हाँ… लेकिन दिल में डर भी रहेगा, “भाई कहीं उड़ते-उड़ते फट गया तो?” बस, यही डर दूर करने के लिए बनता है Launch Escape System – यानी LES.
LES यानी Launch Escape System एक इमरजेंसी सेफ्टी फीचर है जो रॉकेट में बैठे क्रू (अंतरिक्ष यात्री) को इमरजेंसी में रॉकेट से अलग करके सुरक्षित जमीन पर ले आता है। एक तरह का स्पेस वाला ‘इजेक्शन सीट’ समझ लो, लेकिन हाईटेक वर्जन!
LES कैसे काम करता है? देसी भाषा में समझो:
मान लो तू रॉकेट में बैठा है और लॉन्च होने ही वाला है। तभी किसी सेंसर ने पकड़ा कि रॉकेट के इंजन में आग लग गई है। अब पूरा सिस्टम एक्टिव हो जाएगा। इस पॉइंट पर LES कहेगा, “भाई, मैं हूं ना!”
LES के स्टेप्स:
- डिटेक्शन: सिस्टम पहले खतरे को पहचानता है – जैसे इंजन फेल, आग, कंप्यूटर फेल, या कोई और गड़बड़।
- अलगाव: पूरा क्रू मॉड्यूल रॉकेट के मेन बॉडी से झटके में अलग हो जाता है। ये थ्रस्टर (rocket motors) की मदद से होता है।
- उड़ान: क्रू मॉड्यूल को रॉकेट से दूर ले जाया जाता है – आमतौर पर कुछ सौ मीटर ऊपर या साइड में।
- पैराशूट डिप्लॉय: एक बार दूरी बन गई तो मॉड्यूल के पैराशूट खुलते हैं। ये धीरे-धीरे उसे नीचे लाते हैं।
- लैंडिंग: जमीन पर या समुद्र में सुरक्षित लैंडिंग होती है।
भारत में LES: ISRO का देसी सिस्टम
ISRO ने भी अपना LES सिस्टम तैयार किया है। Gaganyaan मिशन के लिए इसका कई बार सफल परीक्षण किया जा चुका है:
- 2018 में ISRO ने पहला पैड अबॉर्ट टेस्ट किया था।
- Gaganyaan के लिए 2023 और 2024 में और भी टेस्ट हुए जिसमें क्रू मॉड्यूल को सफलतापूर्वक अलग किया गया।
ISRO का LES भी अमेरिकी और रूसी टेक्नोलॉजी से कम नहीं। बिल्कुल देसी अंदाज़ में लेकिन हाईटेक लेवल का!
दुनिया के कुछ बड़े LES सिस्टम
1. NASA का LES (Apollo से Artemis तक)
- NASA ने Apollo मिशन के समय एक लंबा टावर जैसा LES इस्तेमाल किया था।
- Artemis मिशन के लिए भी मॉडर्न सिस्टम विकसित हुआ है जो रॉकेट फेल होने पर तुरंत एक्ट कर सकता है।
2. SpaceX का LES
- SpaceX का Crew Dragon एक इंटीग्रेटेड LES यूज़ करता है जिसमें थ्रस्टर्स कैप्सूल के साइड में लगे हैं।
- इससे रॉकेट लॉन्च के किसी भी समय पर बचाव संभव है।
3. रूस का सोयूज LES
- रूस का सोयूज स्पेसक्राफ्ट भी decades से LES यूज़ कर रहा है।
- 2018 में एक रियल मिशन के दौरान इसका इस्तेमाल हुआ और क्रू बच गया।
LES कितना भरोसेमंद है?
LES कोई 100% गारंटी वाला सिस्टम नहीं है, लेकिन फिर भी ये काफी सफल रहा है। 1960s से लेकर आज तक कई बार LES ने लोगों की जान बचाई है।
रॉकेट साइंस में अनिश्चितता बहुत होती है – लेकिन जब जान बचानी हो तो कुछ सेकंड का फैसला पूरे मिशन से बड़ा होता है।
देसी उदाहरण से समझो
सोचो तेरा दोस्त कार चला रहा है और गाड़ी में आग लग गई। अब सीट बेल्ट ऑटोमेटिक खुली, गाड़ी ने ब्रेक मारा और दरवाज़ा खुलकर वो बाहर कूद गया। LES कुछ ऐसा ही करता है, लेकिन ये रॉकेट में होता है और सबकुछ 2-3 सेकंड में हो जाता है।
Conclusion: LES यानी जान बचाने वाला देसी जुगाड़
स्पेस में जाना बड़ा खतरनाक है, लेकिन इंसान का सपना है चांद-सूरज-तारों तक पहुंचने का। LES जैसे सिस्टम इन सपनों को हकीकत में बदलने में मदद करते हैं।
तो अगली बार जब कोई बोले कि रॉकेट उड़ाना रिस्की है, तो बोलना, “भाई, LES है ना!” 😎
सिस्टम का नाम | देश/एजेंसी | प्रमुख विशेषता | रियल केस में उपयोग |
---|---|---|---|
Apollo LES | NASA (USA) | लंबा टावर जैसा सिस्टम | प्रयोग नहीं हुआ |
Artemis LES | NASA (USA) | मॉडर्न, ऑटोमैटेड सिस्टम | परीक्षण जारी |
Crew Dragon LES | SpaceX (USA) | कैप्सूल में इंटीग्रेटेड थ्रस्टर्स | सफल टेस्ट व एक रियल केस |
Soyuz LES | रूस | दशकों पुराना और विश्वसनीय सिस्टम | 2018 में रियल उपयोग |
Gaganyaan LES | ISRO (भारत) | पूरी तरह देसी, सफल परीक्षण | 2023-24 में सफल परीक्षण |