ट्रंप, ईरान और इजराइल के बीच सीजफायर का तमाशा: दुनिया खतरनाक मोड़ पर
आज से पहले कभी ऐसा नहीं देखा — अमेरिका का पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सामने गुस्से में गालियां देता हुआ, हताशा में चिल्लाता हुआ, और सबसे अहम बात — अपनी ही ताकत पर शक करता हुआ दिखा। ऐसा लग रहा है जैसे वो खुद को सुपरपावर समझते रहे, लेकिन अब इजराइल और ईरान उनकी बात तक सुनने को तैयार नहीं।
एक छोटी सी क्लिप में ट्रंप साफ कहते हैं — “They do not know what the F they are doing!” और फिर उनकी कैप्स लॉक में की गई ट्वीट्स एक हताश इंसान की चीख लगती हैं। “Israel do NOT drop those bombs.” “Bring your pilots home NOW.” जैसे कोई स्कूल का मॉनिटर क्लास में शोर मचाने वालों से हाथ जोड़ रहा हो कि प्लीज़ शांति रखो। लेकिन यह कोई क्लासरूम नहीं है — यह वेस्ट एशिया का युद्ध क्षेत्र है।
सीजफायर का ऐलान हो चुका है, लेकिन मिसाइलें फिर भी उड़ रही हैं। ईरान ने सीजफायर के तुरंत बाद मिसाइलें दागीं, और अब इजराइल जवाब में बमबारी कर रहा है। सवाल ये नहीं है कि कौन सही है — सवाल ये है कि ये सब खत्म कब होगा? और क्या ये खत्म होगा भी?
‘आखिरी मुक्का कौन मारेगा?’
ईरान और इजराइल की लड़ाई अब सिर्फ बदला लेने की नहीं, बल्कि अपनी-अपनी जनता को यह दिखाने की है कि हम कमजोर नहीं हैं। ईरान चाहता है कि वह यह दुनिया को दिखा सके कि वह अमेरिका और इजराइल जैसे देशों की बमबारी झेल गया, और फिर भी खड़ा है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसा पाकिस्तान ने इमरान खान के समय में कहा था — कि हम अमेरिका के खिलाफ खड़े हैं। लेकिन बाद में जब रेजीम चेंज हुआ, सब बदल गया।
इसी पैटर्न पर अमेरिका और इजराइल ईरान में भी बदलाव चाहते थे — एक ऐसा शासन जो उनके हिसाब से चले। लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। ईरान ने न सिर्फ हमलों को झेला, बल्कि अब तो खुलेआम ये कह रहा है कि उनका न्यूक्लियर प्रोग्राम बिल्कुल सही सलामत है और जल्दी ही रिस्टोर भी कर लेंगे।
क्या स्ट्राइक का कोई फायदा हुआ?
ट्रंप का कहना है कि उन्होंने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को तबाह कर दिया। पेंटागॉन ने भी यही कहा। लेकिन ईरान का जवाब है — हम दोबारा तैयार हैं। टाइम्स ऑफ इजराइल जैसे अखबार भी यह मान रहे हैं कि तेहरान बहुत जल्दी अपने प्रोग्राम को फिर से बना लेगा।
तो सवाल यह है कि क्या इन स्ट्राइक्स का कोई मतलब निकला? न तो रेजीम चेंज हुआ, न ही न्यूक्लियर प्रोग्राम खत्म। ट्रंप की ट्वीट्स बताती हैं कि वो खुद हताश हैं। “Iran will never rebuild their nuclear facilities,” वो बार-बार यह ट्वीट कर रहे हैं, जैसे इस बात को बार-बार दोहराने से सच्चाई बदल जाएगी।
14 साइंटिस्ट्स की मौत और डेटा लीक
ईरान का मीडिया यह दावा कर रहा है कि उनके 14 न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स को मार दिया गया, और इनका डेटा कैसे लीक हुआ — यह सवाल बड़ा है। ईरान की नजर में IAEA की रिपोर्ट्स से यह जानकारी लीक हुई, जो शायद इजराइल के हाथ लग गई।
यह घटना सिर्फ ईरान के लिए नहीं, बल्कि बाकी देशों के लिए भी चेतावनी है — खासकर भारत के लिए, जहां अतीत में भी न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स की मौतें संदिग्ध परिस्थितियों में हुई हैं।
क्या ईरान को मिलेगा न्यूक्लियर बम?
रशिया के पूर्व राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव ने खुलकर कहा कि वो ईरान को न्यूक्लियर वॉरहेड देने के लिए तैयार हैं। यह बात सुनकर ट्रंप तिलमिला गए। उन्होंने रशिया को न्यूक्लियर सबमरीन की धमकी दे डाली।
लेकिन मेदवेदेव फिर भी अपनी बात पर अड़े हैं — उनका कहना है कि अगर दुनिया ने अमेरिका और इजराइल के एकाधिकार को खत्म करना है, तो ईरान को हथियार देना जरूरी हो सकता है।
चीन का मामला और ट्रंप की उलझन
इतना सब कहने के बाद ट्रंप ने अचानक एक और चौंकाने वाली बात कह दी — “चीन अब आराम से ईरान से ऑयल खरीद सकता है, और उम्मीद है वो अमेरिका से भी खरीदेगा।”
यह वही अमेरिका है जिसने पूरी दुनिया को धमकाया था कि जो देश ईरान से ऑयल खरीदेगा, उसे सैंक्शन झेलनी होगी। और अब ट्रंप खुद कह रहे हैं कि कोई बात नहीं, चीन खरीद सकता है।
यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका का रुख अब विरोधाभासी हो चुका है — और ट्रंप की बयानबाजी में न तो लॉजिक है, न ही स्टैबलिटी।
दुनिया की चिंता जायज़ है
कई लोग कह सकते हैं — इससे हमें क्या फर्क पड़ता है? लेकिन फर्क पड़ता है, क्योंकि अमेरिका का राष्ट्रपति दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान होता है। और अगर वो खुद कन्फ्यूज है, तो दुनिया अस्थिर हो जाती है।
अभी भी अगर इजराइल ने कोई बड़ा हमला कर दिया — जैसे कि ईरान के सुप्रीम लीडर को निशाना बना लिया — तो यह युद्ध रुकने वाला नहीं है। यह और लंबा चलेगा, और शायद बहुत ही विनाशकारी साबित हो।