डॉलर पस्त, रुपया मस्त! पूरी कहानी पढ़ें

रुपया हुआ मजबूत: ढाई साल का बेहतरीन प्रदर्शन

भारत के लिए इस हफ्ते शेयर बाजार और विदेशी मुद्रा बाजार से कई सकारात्मक संकेत मिले हैं। भारतीय रुपया जनवरी 2023 के बाद पहली बार किसी एक हफ्ते में सबसे ज्यादा चढ़ा और डॉलर के मुकाबले 1.3% मजबूत होकर 85.4750 पर बंद हुआ। यह रुपया के लिए बीते ढाई सालों का सबसे बेहतरीन साप्ताहिक प्रदर्शन रहा।

क्यों मजबूत हुआ रुपया?

रुपये की मजबूती के पीछे कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कारण हैं। सबसे अहम कारण ईरान-इज़राइल युद्ध में अचानक ठहराव आना है। युद्ध का खतरा कम होते ही निवेशकों ने डॉलर जैसी सेफ हेवन करंसी से पैसा निकालकर अन्य बाजारों में लगाया, जिससे डॉलर कमजोर हुआ और रुपये को फायदा हुआ। साथ ही अमेरिका में फेडरल रिजर्व की नीतियों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता ने भी डॉलर पर दबाव डाला। डॉलर इंडेक्स इस हफ्ते करीब 1.5% गिरकर तीन साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है, जिससे रुपये को मजबूती मिली।

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और असर

इस हफ्ते कच्चे तेल के दाम करीब 11% गिर गए। भारत अपनी ज़रूरत का लगभग 80% तेल आयात करता है, इसलिए तेल की कीमतों में गिरावट सीधा फायदा देती है। जब तेल सस्ता होता है, तो भारत को कम डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। इससे न सिर्फ विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव घटता है बल्कि रुपये की स्थिति भी मजबूत होती है। यह गिरावट बाजार के लिए राहत की खबर बनी और रुपये की मजबूती का एक बड़ा कारण साबित हुई।

डॉलर की अनिश्चितता और वैश्विक माहौल

अमेरिकी सरकार की नीतियों में स्थायित्व की कमी से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों में चिंता बढ़ी है। फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। अगर फेडरल रिजर्व राजनीतिक दबाव में आता है, तो डॉलर की स्थिति और कमजोर हो सकती है। इसके चलते डॉलर पर दबाव आया और निवेशकों ने दूसरी करेंसीज और बाजारों की तरफ रुख किया। इसी का फायदा भारतीय रुपये को मिला।

एशियाई मुद्राओं के मुकाबले स्थिति

हालांकि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है, लेकिन बाकी एशियाई मुद्राओं से तुलना करें तो रुपये की चाल थोड़ी धीमी रही है। इस साल अब तक कोरियन वॉन 2% और चीनी युवान करीब 9% चढ़ चुके हैं, जबकि रुपया सिर्फ 1.3% बढ़ा है। विशेषज्ञ इसे अंडरपरफॉर्मेंस कह रहे हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि रुपया कमजोर है, बल्कि यह दिखाता है कि बाकी देशों की मुद्राओं ने ज्यादा तेजी से बढ़त बनाई है। रुपये की तुलना में उनकी रफ्तार थोड़ी ज्यादा रही है।

विदेशी निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी

इस हफ्ते भारत में विदेशी निवेशकों की सक्रियता भी बढ़ी है। सरकारी बॉन्ड्स में विदेशी निवेशकों ने खरीदारी की है और शेयर बाजार में भी ब्लॉक डील्स और नए आईपीओ में भारी रुचि दिखाई है। विदेशी निवेशकों का पैसा आना न सिर्फ मुद्रा को मजबूती देता है बल्कि बाजार में स्थिरता और निवेशकों के विश्वास को भी बढ़ाता है। यह भरोसा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है।

दशमलव के पीछे की अहमियत

बड़ी मात्रा में लेन-देन करने वालों के लिए दशमलव के चार अंकों तक की कीमत में भी फर्क मायने रखता है। करोड़ों डॉलर के कारोबार में ये छोटे-छोटे बदलाव भी लाखों का फर्क पैदा कर सकते हैं। इसलिए जब रुपया 1.3% चढ़ा, तो यह अंतरराष्ट्रीय कारोबारियों और निवेशकों के लिए भी बड़ी खबर बन गई।

आगे की संभावनाएँ

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले हफ्तों में रुपये में थोड़ी और मजबूती देखी जा सकती है। हालांकि किसी बड़े उछाल या चमत्कार की उम्मीद नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे स्थिरता बढ़ने की संभावना है। अमेरिका का पर्सनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (PCE) डेटा और फेडरल रिजर्व की नीतियां रुपये की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी। अगर फेड ब्याज दरों को लेकर सख्ती दिखाता है, तो डॉलर की स्थिति बदल सकती है और उसका असर सीधे तौर पर रुपये पर भी पड़ेगा।

भारत के लिए क्या मायने रखता है ये बदलाव

रुपये की मजबूती का मतलब सिर्फ करेंसी रेट नहीं है। यह भारत की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर डालती है। कच्चे तेल के दाम सस्ते होने से आयात पर खर्च घटता है, विदेशी निवेश से शेयर बाजार में स्थिरता आती है और रुपये की मजबूती से महंगाई पर भी नियंत्रण में मदद मिलती है। इन सबका मिला-जुला असर आम आदमी से लेकर बड़े कारोबारियों तक, सभी के लिए राहत की खबर बनता है।

परिणाम क्या होगा

रुपये की ढाई साल की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा संकेत है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट, डॉलर की कमजोरी और विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी ने रुपये को सहारा दिया है। हालांकि बाकी एशियाई मुद्राओं के मुकाबले रुपये को और तेजी दिखानी होगी, लेकिन अभी के लिए तस्वीर सकारात्मक है। आगे अमेरिकी नीतियों और वैश्विक घटनाओं पर नजर रहेगी, पर उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भी रुपया स्थिर और मजबूत रहेगा। इससे भारत को आर्थिक मोर्चे पर मजबूती मिलेगी और निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा। यह सब मिलकर आने वाले समय में भारत की आर्थिक सेहत को और बेहतर बना सकते हैं।

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