दुनिया का सबसे ताकतवर पद क्या होता है? अमेरिका का राष्ट्रपति! और जब उस पद पर बैठा हो डोनाल्ड ट्रंप जैसा व्यक्ति, तो यकीन मानिए – भू-राजनीति कभी बोर नहीं होने देती। इस बार ट्रंप ने फिर से सुर्खियां बटोरी हैं, और वजह वही पुरानी है – ईरान।
लेकिन कहानी में इस बार ट्विस्ट है। अब सिर्फ डिप्लोमैटिक बयानबाजी नहीं हो रही – ट्रंप खुलेआम “अनकंडीशनल सरेंडर” की मांग कर रहे हैं, जैसे 1971 में भारत ने पाकिस्तान से करवाई थी। जी हाँ, राष्ट्रपति महोदय चाहते हैं कि ईरान बाकायदा घुटने टेक दे। और वो भी लिखित में!
“हमें पता है सुप्रीम लीडर कहां छुपा है!”
अब ये तो कुछ ज़्यादा ही हॉलीवुड टाइप डायलॉग हो गया, है ना? लेकिन ट्रंप यहीं नहीं रुके। उन्होंने ये भी कह दिया कि ईरान का सुप्रीम लीडर “इजी टारगेट” है – बस हम अभी उसे “टेक आउट” नहीं कर रहे। और हाँ, टेक आउट का मतलब – मार सकते हैं, पर अभी नहीं मारेंगे। ऐसे बयान अगर ट्विटर पे दे दिए जाएं तो ग़लती से लोगों को लगेगा कि कोई GTA VI का ट्रेलर चल रहा है।
क्या वाकई अमेरिका ईरान पर स्ट्राइक कर रहा है?
ट्रंप के करीबी टेड क्रूज़ के मुंह से भी सच फिसल गया – “हम तो पहले से ईरान पर स्ट्राइक कर रहे हैं।” फिर कहा, “हमें तो लगा इजरायल कर रहा है, पर हमारी मदद से।” मतलब साफ है – अमेरिका ने चुपचाप बम गिराना शुरू कर दिया है, और दुनिया को लगा यह सब ‘नो रूल्स सॉलिडेरिटी’ में हो रहा है।
साथ ही ट्रंप का दावा है कि “हमने ईरान के आसमान पर पूरा कंट्रोल ले लिया है।” यानी ईरानी स्काई अब अमेरिका-इजरायल एयरस्पेस बन चुका है – कम से कम उनके बयानों के हिसाब से।
रशिया और चीन: चुप दर्शक या उभरते प्रतिद्वंद्वी?
इतिहास गवाह है कि जब-जब अमेरिका ने कोई बड़ा कदम उठाया, तब रशिया और चीन पीछे नहीं रहे। लेकिन इस बार, यूक्रेन में फंसे रशिया ने ईरान से मुँह मोड़ लिया है। न कोई सैनिक भेजे, न कोई धमकी – बस एक टालमटोल वाला स्टैंड।
लेकिन चीन? चीन वो खिलाड़ी है जो आखिरी ओवर में अचानक छक्का मारता है। अमेरिकी रणनीतिकार मान रहे हैं कि अगर ईरान पर बमबारी बढ़ती रही, तो चीन कूद सकता है – खासकर अगर खमेनी (ईरानी सुप्रीम लीडर) को सीधे टारगेट किया गया।
‘हैरी ट्रूमन मोमेंट’ की तलाश?
अब कहानी में असली मोड़ आता है। अमेरिका के इजराइल में एम्बेसडर माइक हकबी ने ट्रंप को सीधा संदेश भेजा – “आपके पास वही मौका है जो हैरी ट्रूमन के पास था।” याद दिला दें, ट्रूमन वही राष्ट्रपति थे जिन्होंने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरवाए थे।
क्या ट्रंप भी वही रास्ता चुनने वाले हैं? या बस सस्पेंस बनाए रखने का एक पुराना अमेरिकी तरीका है – “लास्ट मिनट पर टर्निंग पॉइंट।”
परमाणु हमला? या “माइंड गेम” की एक्स्ट्रा एडवांस लेवल
बात करें सच्चाई की – कोई भी राष्ट्र, चाहे वो अमेरिका ही क्यों ना हो, परमाणु हमला ऐसे नहीं करता। लेकिन जब बात ट्रंप की हो, तो लॉजिक छुट्टी पर चला जाता है। उनकी सलाहकार टीम भी अब दो हिस्सों में बंट गई लगती है – एक कहती है “बम गिराओ”, दूसरी कहती है “इतनी बमबारी करो कि दुनिया दंग रह जाए लेकिन न्यूक्लियर लाइन क्रॉस मत करो।”
अब सोचिए, अगर ईरान पर इतने ज़बरदस्त हमले हो जाएं कि तेहरान खंडहर बन जाए, क्या वाकई ईरान सरेंडर करेगा? या फिर वही होगा जो अमेरिका की कई पुरानी रणनीतियों के साथ हुआ – इराक, अफगानिस्तान, सीरिया?
ईरान: बर्बादी के कगार पर या नए संघर्ष का प्रतीक?
ईरान को यूएस-इजराइल गठबंधन ने पिछले कई सालों से “टारगेट प्रैक्टिस” बना रखा है। एफएटीएफ की ग्रे लिस्टिंग, आर्थिक प्रतिबंध, न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स की हत्याएं, और अब बमबारी। लेकिन फिर भी ईरान झेलता आया है।
अगर रशिया-चीन जैसे देश हस्तक्षेप नहीं करते, और अमेरिका खुलकर सैन्य कार्रवाई करता है – तो यह निश्चित ही एक नया इतिहास लिखेगा। लेकिन वो इतिहास शांति का नहीं, बल्कि तीसरे विश्व युद्ध के खतरे का हो सकता है।
आखिर में सवाल वही: ट्रंप क्या वाकई इतिहास में नाम दर्ज कराना चाहते हैं?
या फिर यह सब एक ड्रामा है? एक ऐसा नाटक जो 2024 के चुनावों से पहले जनता का ध्यान खींचने और पुराने समर्थकों को “महानता” का भ्रम देने के लिए खेला जा रहा है?
एक तरफ “बड़ा फैसला” लेने की ललकार है, दूसरी ओर वैश्विक विनाश की आशंका। और इन सबके बीच फंसा है एक देश – ईरान, जिसे या तो चुपचाप झुकना होगा, या फिर और अधिक जख्म सहने होंगे।
फैसला चाहे जो भी हो, आने वाले कुछ घंटे और दिन, मध्य-पूर्व और पूरी दुनिया की राजनीति का रुख तय करेंगे।